कैसे धीर धरूं ?

एक गीत,,,,,
कैसे धीर धरूं ?

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कैसे धीर धरूं प्रियतम, यह मेरे वश की बात नहीं
याद तुम्हारी जब न आई ,ऐसी कोई रात नहीं.
जिस पल तुमने हाथ गहा था
वह पल कितना सुंदर था
जीवन में जो घटित हुआ
वह सब कुछ कितना सुखकर था
कैसे कह दूं नियति ने भी कोई लगाई घात नहीं
याद तुम्हारी जब न आई,ऐसी कोई रात नहीं.
तुम मेरे आराध्य रहे,मैं सतत उपासक रही प्रिय
सांस-सा़ंस की माला में बस नाम तुम्हारा जपा प्रिय
टूटी माला बिखरे मोती,कुछ भी आया हाथ नहीं
याद तुम्हारी जब न आई,ऐसी कोई रात नहीं.
जीवन के पृष्ठों पर अंकित
कितने स्वप्न अतीत के
दंश मारते हैं वे ही पल
बिछुड़न के मनमीत के
कैसे कह दूं विधना ने,दे दी मुझको यूं मात नहीं
याद तुम्हारी जब न आई,ऐसी कोई रात नहीं.

विजया गुप्ता,,,
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sanjeev bansal